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कटनी संबंधी अधिक जानकारी

कटनी (जिसे मुड़वारा के रूप में भी जाना जाता है) मध्य प्रदेश, भारत में कटनी नदी के तट पर स्थित एक शहर है। यह कटनी जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह मध्य भारत के महाकौशल क्षेत्र में स्थित है। यह संभागीय मुख्यालय जबलपुर से 90 किमी (56 मील) की दूरी पर स्थित है। कटनी जंक्शन भारत के सबसे बड़े एवं महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शनों में से एक है और यहाँ भारत का सबसे बड़ा रेल्वे यार्ड और सबसे बड़ा डीजल लोकोमोटिव शेड है। कटनी जिले में चूना, बॉक्साइट और अन्य कई महत्वपूर्ण खनिज बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं । कटनी 20 वीं सदी की शुरुआत के बाद से शहर के रूप में जाना जाता है। शहर का विकास ब्रिटिश शासन के अधीन ही शुरू हो चुका था । 28 मई 1998 को कटनी जिला घोषित किया गया । “.

कटनी तीन अलग-अलग सांस्कृतिक राज्यों महाकौशल, बुंदेलखण्ड और बघेलखण्ड की संस्कृति का समूह है। कटनी को मुड़वारा कहा जाता है जिसके संबंध में तीन अलग अलग कहानियाँ प्रचलित हैं-

 

कटनी जंक्शन वैगन यार्ड से अर्द्धवृत्ताकार मोड़ जैसा है जिसके कारण लोग इसे मुड़वारा कहते हैं ।

एक अन्य कहानी के अनुसार स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के सिर काटने के बहादुरी भरे काम के कारण इसे मुड़वार कहा जाने लगा ।

कटनी के विभिन्न ऐतिहासिक स्थल:-

बहोरीबंद :

बहोरीबंद

बहोरीबंद में कई प्रसिद्ध स्मारक हैं । इन स्मारकों में 12 फीट ऊंची जैन तीर्थंकर शांतिनाथ की मूर्ति प्रमुख है । प्रतिमा के निचले हिस्से में 12 वीं सदी के कलचुरी राजा गयाकर्णदेव के अधीन शासक रहे महासमंताधिपति गोल्हनेश्वर राठौर के बारे में विस्तृत जानकारी लिखी गई है । गांव के उत्तर में जलाशय के पास एक पत्थर पाया गया है जिसमें भगवान विष्णु के 10 अवतार चित्रित किये गये हंत । यहाँ भगवान विष्णु के शेषशैया तथा भगवान सूर्य की कई मूर्तियां हैं। आजकल स्टोन पार्क बनने के बाद बहोरीबंद ने अधिक महत्व और प्रसिद्धि प्राप्त की है।

तिगवां:

तिगवां

पूर्व में तिगवां बहोरीबंद का हिस्सा था। तिगवां का पूर्व नाम झान्झागड़ था । तिगवां में आल्हा और ऊदल ने माधोगढ के राजा के साथ लड़ाई लड़ी थी। यहाँ एक 1500 वर्ष पुराना मंदिर देखा जा सकता है जिसकी छत सपाट है । यहाँ नरसिंह भगवान की एक मूर्ति है और दीवार के दूसरी तरफ जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। गांव के उत्तर में बहुत सारी मूर्तियां हैं | गाँव के तालाब के पास एक पत्थर पाया गया है जिसमें भगवान विष्णु के 10 अवतार चित्रित किये गए हैं ।

विजयराघवगढ़ :

विजयराघवगढ़

कटनी जिला मुख्यालय से 33 किमी दूरी पर, समुद्र तल से 350 मीटर ऊंचाई पर राजा प्रयागदास द्वारा मौजा, पडरिया और लोहारवाडा के निकट एक नए शहर का निर्माण किया गया । इसे विजयराघवगढ़ के नाम से जाना जाता है जो एक ऐतिहासिक स्थान है । राजा प्रयागदास द्वारा भगवान विजयराघव के एक भव्य मंदिर और किले का निर्माण करवाया गया और किले को विजयराघवगढ़ के रूप में नामित किया गया । किले के नाम पर ही इस नवनिर्मित शहर का नाम विजयराघवगढ़ दिया गया । इसके दूसरी ओर एक अन्य सुन्दर इमारत है जिसे रंगमहल के नाम से जाना जाता है । यह कटनी जिले का सबसे सुन्दर किला है ।

रूपनाथ:

 रूपनाथ

रूपनाथ बहोरीबंद से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक तीर्थ स्थान है । यहाँ पंचलिंगी शिव प्रतिमा है जिसे रूपनाथ के नाम से जाना जाता है । यह कैमोर पहाड़ियों के एक सिरे पर स्थित है । यहाँ पर तीन कुंड क्रमशः स्थित हैं । सबसे नीचे का कुंड सीताकुंड मध्य का लक्ष्मण कुंड और सबसे ऊपर भगवान राम कुंड है । वहाँ एक बड़े पत्थर पर कविता चित्रित है जो 232 ईसापूर्व की हो सकती है । यहाँ कुछ बौद्ध धर्म का पालन संबंधी आदेश पाली भाषा में लिखे गये है । रूपनाथ से एक किमी दूर पर सिन्दुरसी गांव है जहाँ चार पुरानी मूर्तियां हैं । इस स्थान को जोगिनी का स्थान कहा जाता है । .

बिलहरी :

बिलहरी

इस शहर का पुराना नाम पहुपावती/पुष्पावती नगर आदि था | यहाँ कई धार्मिक शिलालेख पाए गए हैं, जिनमें विभिन्न मंदिरों का उल्लेख किया गया है । इन मंदिरों में से अब केवल भगवान वाराह (विष्णु) का मंदिर ही शेष है । बिलहरी से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर एक अन्य शिव मंदिर है । इसे कामकंदला का किला भी कहा जाता है । इस प्राचीन इमारत में पुरातत्विदों ने एक शिलालेख खोजा है जिसमें कलचुरी राजा कयूरवर्ष का वर्णन पाया जाता है । यह वर्त्तमान में नागपुर संग्रहालय में है । एक अन्य चट्टान पर एक बड़ा शिलालेख पाया गया है जिसमें बिलहरी के समीप एक अन्य मंदिर का उल्लेख मिला है । राजा लक्ष्मण द्वारा बिलहरी में एक बड़े तालाब का निर्माण कराया गया है । बाद के शिलालेखों में लेख किया गया है कि उक्त राजवंश का बहुत तेजी से पतन हो गया है और चंदेल राजाओं ने बाद के वर्षों में क्षेत्र पर कब्जा कर लिया । बिलहरी के पान (ताम्बूल) अत्यंत प्रसिद्ध रहे हैं जिसके संबंध में प्रसिद्ध ग्रन्थ आईने-अकबरी में वर्णन किया गया है।

झिंझरी :

 झिंझरी
कटनी से 3 किमी दूर जबलपुर मार्ग पर स्थित झिंझरी में लगभग 14 बड़ी रंगीन चित्रित चट्टानों (शैलचित्र) में प्रागैतिहासिक काल के संबंध में जानकारी ज्ञात होती है । शैलचित्रों में यहाँ के आसपास पाए जाने वाले सभी जानवरों जैसे गाय, बैल, हिरण, कुत्ता, बकरी, सुअर को चित्रित किया है। ऐसा गया है कि दरियाई घोड़ा प्राचीन समय में यहां पाया जाता रहा होगा । इस जानवर को छोड़कर बाकी सभी जानवरों, युद्ध में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों आदि के चित्र और आदमी, औरत, पेड़, फूल आदि के चित्र उपलब्ध हैं । ये शैलचित्र लगभग 10000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व के तथा कुछ चित्र 700 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व के हैं ।